ऋग्वेद, अथर्ववेद और उपनिषदों में यह कहा गया है कि मनुष्य कहलाना मानव शरीर में जन्म पाने तक सीमित नहीं है। मनुष्य वह है जो अपने मन को धर्म और करुणा की राह पर अनुशासित करता है — “मनो‘नुयाति इति मनुष्यः।” यही कारण है कि वेदों में स्पष्ट रूप से लिखी गई है — “मनुर्भव” (ऋग्वेद 10.53.6) — अर्थात “सच्चा मनुष्य बनो।”
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आज के समय में इस वैदिक वाक्य का एक बड़ा व्यावहारिक अर्थ हमारे लाइफस्टाइल से भी जुड़ता है। जब हम केवल अपने स्वाद और आदत के लिए जानवरों को कष्ट पहुँचाते हैं तो हमारे मन में करुणा का स्तर शून्य हो जाता है। पर यदि हम अहिंसा चुनते हैं तब हम उस “सच्चे मनुष्य” की परिभाषा के करीब पहुँचते हैं जिसका वेदों में आदर्श रखा गया है।