आत्मरक्षा ही सच्चा धर्म है।

 

सोचो ज़रा यदि अचानक तुम्हारे ऊपर हमला हो जाए — जैसे कोई बंदूक लेकर ऑफिस में घुस आए और गोलियां चलाने लगे — तब तुम्हारे पास ये सोचने का वक्त नहीं होता, "अरे, मैं धीरे से जवाब दूं या जोर से? कितना जवाब देना सही रहेगा?" इंसान का नेचुरल रिएक्शन होता है खुद को बचाना। इसे कानून में प्राइवेट डिफेंस कहा जाता है।




सदियों से हमारा धर्म भी इस सहज भावना को पहचानता आया है — क्योंकि जीवन की रक्षा करना हिंसा नहीं, पुण्य का काम है। अहिंसा का मतलब कभी भी नुकसान सहने का नाम नहीं था। इसका मतलब है: किसी को बेवजह चोट न पहुंचाओ। लेकिन जब खुद की जिंदगी खतरे में हो, तो उसे बचाना भी अहिंसा का हिस्सा है, क्योंकि अहिंसा की शुरुआत होती है अपनी जान बचाने से।


फिर भी कोर्ट में अक्सर जज प्राइवेट डिफेंस को एक दूसरे नजरिए से देखते हैं: "हाँ, तुमने अपनी जान बचाई पर दुश्मन को इतना घायल करना जरूरी था क्या?" लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने हाल में राकेश दत्त शर्मा बनाम उत्तराखंड (2025) के मामले में ये बात साफ कर दी जहां उन्होंने पुराने मामले दर्शन सिंह बनाम पंजाब (2010) का हवाला दिया। राकेश दत्त शर्मा (डॉक्टर) पर गोलियां चलीं और उसने अपनी जान बचाने के लिए फायरिंग की। कोर्ट ने कहा: आत्मरक्षा को सोने के तराजू से नहीं तौला नहीं जा सकता। जब जान बचाने की बात हो तब परफेक्ट कैलकुलेशन की उम्मीद मत करो।


एक वीगन के तौर पर मेरा मानना है कि अपनी जान या किसी निर्दोष जानवर की जान बचाना ही असली अहिंसा है। क्योंकि जिंदगी अनमोल होती है — चाहे वो कोई जानवर हो या वह डॉक्टर जो खतरे में है। दोनों को बचाव का हक है। दोनों को प्रोटेक्शन चाहिए।


अगर आप मेरा अगला पोस्ट भारतीय दंड संहिता (IPC) के तहत आत्मरक्षा का अधिकार पढ़ेंगे तो आप समझेंगे कि ज़िंदगी बचाना कोई पाप नहीं। यह एक जीव रक्षा है — चाहे वो इंसान की हो या किसी जानवर की। यह कोई क्रूरता नहीं बल्कि करुणा का असली रूप है। कानून को भारत की हकीकत के साथ सांस लेनी चाहिए जहाँ खतरे अचानक आते हैं और इंसान अपने इंस्टिंक्ट पर निर्भर होता है। उस पल आत्मरक्षा ही सच्चा धर्म है।


👨‍🏫 सुदेश कुमार

@vegansudesh


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