शास्त्रों में स्पष्ट कहा गया है —
"यथान्नं तथा मनः"
अर्थात् जैसा अन्न, वैसा मन।
यह नियम केवल मनुष्य पर ही नहीं बल्कि जीव-जंतुओं पर भी लागू होता है। यदि गौमाता को प्राकृतिक आहार जैसे घास, चारा, अनाज दिया जाए तो उसका दूध सात्त्विक और शुद्ध माना जाता है। परन्तु जब गाय को हड्डी या मांस से बने चारे खिलाए जाते हैं तो उसकी सात्त्विकता नष्ट हो जाती है।
हिंदू धर्म की दृष्टि से दूध तभी पवित्र कहा जा सकता है जब वह हिंसा-रहित, शुद्ध और सात्त्विक आहार पर आधारित हो। किन्तु वीगन विचारधारा इससे भी एक कदम आगे जाकर यह कहती है कि — किसी भी पशु के दूध, दही और इससे बनी चीज़ों का उपयोग करना उचित नहीं है क्योंकि यह भी पशु-शोषण का रूप है।
इसलिए प्रश्न हमारे सामने खड़ा होता है —
👉 क्या हम आज भी पुरानी सोच से जुड़ें रहें या ऐसी जीवनशैली अपनाएँ जिसमें हर जीव के प्रति दया और करुणा हो?
🌱 अहिंसा का मार्ग हमें सिखाता है कि असली सात्त्विकता तब ही है जब हमारी थाली भी करुणा से भरी हो।
🪀 वीगन सुदेश