16 जुलाई 2025 को बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया। अदालत ने कहा कि हाथी का सम्मान के साथ जीने का अधिकार, कहीं भी मनुष्यों की किसी धार्मिक और पारंपरिक मान्यताओं से ऊपर है। एक वीगन एक्टिविस्ट और कानून विशेषज्ञ के तौर पर मैं मानता हूँ कि यह फैसला सिर्फ कानून के हिसाब से ही नहीं बल्कि नैतिकता के लिहाज़ से भी बेहद ज़रूरी है। किसी मासूम जानवर के अधिकार को धर्म और परम्परा की वजह से नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।
यह मामला 36 साल की हथिनी 'महादेवी' से जुड़ा है जिसे महाराष्ट्र के नंदनी गाँव में एक जैन धार्मिक संस्था ने सालों तक जंजीरों में बांधकर रखा और अपने मतलब के लिए उसका उपयोग किया। महादेवी को खुली हवा में घूमने-फिरने और अन्य हाथियों के साथ समय बिताने का कोई मौका नहीं दिया जाता था। महादेवी ने अपनी खराब मानसिक हालत के कारण आश्रम के मुख्य पुजारी पर हमला करके उसे मार डाला। इसके बावजूद भी ट्रस्ट ने महादेवी को धार्मिक कार्यक्रमों के लिए अपने पास रखने की मंजूरी मांगी। जब अदालत ने महादेवी की हालत देखी तो खुद हस्तक्षेप करना सही समझा।
असल में महादेवी अकेली नहीं है। देशभर में कई जानवर हमारे धर्म और परम्परा के नाम पर बंधे रहते हैं और उन्हें सहना पड़ता है। अदालत में पेश डॉक्टरों की रिपोर्ट ने साबित किया कि महादेवी की बीमारियों का कारण इंसानों के द्वारा लगातार किया गया शोषण था।
अदालत ने ‘पैरेंस पैट्रिया’ (कमज़ोर और असहाय के रक्षक के रूप में) की भूमिका में रहते हुए पाया कि ट्रस्ट के आश्वासन मात्र दिखावे भर थे। महादेवी की तकलीफें सिस्टम की देन थीं, कोई इत्तेफ़ाक़ नहीं। अदालत ने साफ कहा कि जानवरों की भलाई को किसी भी धर्म और परम्परा के लिए नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।
अदालत ने बताया कि भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 सभी को गरिमा के साथ जीवन का अधिकार देता है, जिसमें जानवर भी शामिल हैं। अनुच्छेद 25 धार्मिक स्वतंत्रता देता है लेकिन इसकी दीवारें वहाँ खत्म हो जाती हैं जहाँ किसी जीव को तकलीफ हो।
यहां सुप्रीम कोर्ट के पुराने फैसलों का भी हवाला दिया गया ताकि यह मामला एक मजबूत उदाहरण बने।
अदालत ने आदेश दिया कि महादेवी को वनतारा ट्रस्ट को सौंपा जाए जहाँ उसकी सही देखभाल और सम्मान हो सके। यह फैसला सिर्फ महादेवी के लिए ही न्याय नहीं है बल्कि पूरे देश के लिए एक मिसाल है। इससे हमें यह सीख मिलती है कि धर्म और परंपरा की आड़ में किसी जानवर के अधिकारों की अनदेखी नहीं होनी चाहिए।
यह फैसला बताता है कि हमारी धार्मिक परंपराएँ समय के साथ बदलनी चाहिए ताकि हर जीव — चाहे वह इंसान हो या जानवर — उसका सम्मानपूर्वक जीवन सुनिश्चित हो सके।